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  1.  भ्रष्टाचार से मजबूर आख़िरकार क्यों ..?                          Written By Rakesh Verma


     


     


     


     


     


     


     


     


    विषय: दिन-प्रतिदिन बढ़ रही महंगाई की आग में हम क्यों झुलसने को मजबूर है, इसके असली दोषी कौन है ? क्या हम इतने सक्षम है कि इस समस्या से निजात पाकर एक सुखद भविष्य की कल्पना कर सके  अगर आप का जवाब हां में है तो आइये मेरे साथ विचार सांझे


    कर के एक अच्छे उद्द्येश्य की तरफ  बढ़ने का प्रयास करे न कि पीड़ित देशों की पंक्ति में अपनी स्थिति कायम रखने की तरफ…………………..I


     


     


     


     


     


     


     


     


     


     


     


    जैसा की हम सभी जानते है की भारत एक ग्रामीण प्रष्ट भूमि पर आधारित राष्ट्र है जिसकी आत्मा गावों में बसती है l फिर क्यों अब तक आजादी के बिताये 63 सालों में हमारा प्रशासनिक ढांचा ग्रामीण परिवेश तथा बढ़ते शहरीकरण में सामजंस्य पैदा करने में अब तक विफल रहा है, आइये एक बार खुद उसका अवलोकन करके देखें….. l


    आज हम जो विकास की आड़ के पीछे छिपे दोषों का बहाना बना कर महंगाई तथा भ्रष्टाचार के सिर पर ठीकरा फोड़ कर अपने आप को बचाने के प्रयास में जुटे है क्या वह एक झूठा भ्रम नहीं है………? फिर हम सभी यह क्यों भूल जाते है कि मनुष्य की सबसे बड़ी मजबूती यह है कि वो सामजिक प्राणी होने के नाते समाज से कभी दूर नहीं रह सकता l आज वर्तमान स्तिथि को देखते हुए अगर अब भी हम एक ईमानदारी से प्रेरितहो कर  संगठित प्रयास न कर पाए तो मुझे डर है कि  कहीं यह प्रशासन व्यवस्था भविष्य में  फिर  से पूंजीपति वर्ग के हांथो की कठपुतली बनकर न रह जाए जिस प्रकार फ्रांसिसी व् ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी वयापार करते हुए प्रशासक बैठी थी और यही शर्मनाक तस्वीर भविष्य में अपनी गलतियों पर रोने को मजबूर न कर दें l हमारे समाज में फैली अव्यवस्था के लिए सारा दोष राज व्यवस्था और कार्यवाहक प्रशासन प्रणाली पर जाता है क्योकि जिस देश के राजनीतिज्ञ अपने देश का पैसा विदेशी बेंको में जमा करवाएंगे उसका क्या होगा? यह एक बेहद संकुचित सोंच है फिर क्यों हम भूल जाते है कि इस प्रणाली को चलाने वाले है तो हम में से ही कोई हैं l मेरे भाइयो जिस देश की ओसत सोच ही भ्रष्ट होगी वहां के प्रशासनिक अधिकारी यदि इन राजनीतिज्ञों के आगे घुटने न टेके तो ये व्यवस्था सुधर सकती है परन्तु जिस देश के नेताओ की ओसतसोच ही भ्रष्ट होगी वहां पर हम कैसे अच्छी शासन व्यवस्था की उम्मीद कर सकते है क्योकि प्रशानिक अधिकारी भी पैसा कमाने के चक्कर में इन राजनीतिज्ञों से पीछे नहीं है  फिर हम कैसे अच्छी शासन व्यवस्था की उम्मीद कर सकते है l हमें यह क्यों याद नहीं रहता की जैसे हमारे आदर्श होंगे, वैसी ही हमारी सोंच तथा भविष्य होगा l


    हमारे  देश की सबसे बड़ी समस्या कानून-कायदों की है ये बेहद लचीले होने के कारण कोई भी इनका फ़ायदा आसानी से उठा लेता है यही वो मुख्य कारक है जिनका रोना रो कर हम अपने बचाव के लिए इनका दुरपयोग करते है l बहस-बाजी  में समय खोते हुए वास्तव में करते तो हम  कुछ नहीं इसके विपरीत हम काम करने की बजाये बोलने में अधिक विशवास करते है इससे भला कैसे मुकर सकते है l आप संसद के  सदन को ही देखे जहाँ केवल बहस-बाजी, दोष रोपण-प्रत्यारोपण का खेल इतनी सफाई से खेला जाता है की सीधा प्रसारण देख कर आम जनता भी गुमराह हो जाती है l ये तो आप ने भी देखा तथा महसूस किया होगा की हम कितने निष्कर्षो को अंजाम देते है l आज सच में हमारी मानसिकता ऐसी बन चुकी है की जब समस्या हमें चारों तरफ से घेर लेती है तभी हम  उस के निदान (निवारण) के लिए इधर-उधर भागने का प्रयास करते है l कुछ दिन तक तो मीडिया भी इनके दोषों का शोर बढ़-चढ़ कर मचाती है लेकिन कुछ समय बाद वही "ढ़ाक के तीन पात" वाली सोच का कड़वा घूँट पीकर चुप चाप बैठ जाते है l फिर क्यों नहीं आज पूंजीपति वर्ग और निम्न तथा मध्यमवर्गीय में जो आर्थिक अंतर गहरा चूका है उस तरफ ध्यान करते l अगर हम इस तरफ ध्यान देते तो हमारे अन्नदाता (किसान वर्ग) की सोच आत्महत्या तक किसी भी हालत में नहीं पहुँचती l आखिर क्यों..........? आइये इन दिमाग में उपजते सवालों के समाधान ढूंढने की एक छोटी सी कोशिश करें जिसमे आप सभी के साथ की कामना करता हूँ l


    1.    जब तक  हमारी आध्यात्मिक सोच मजबूत नहीं होगी तब तक हम एक-दुसरे के दुखो में शरीक होकर उस ईश्वरीय सोच तथा प्राक्रतिक बुनियादी सिद्धांत "सहयोग तथा आपसी विश्वास" के महत्व को नहीं समझ पायेंगे और जब तक हम ऐसी भावना को अपनी मानसिकता में जगह नहीं देंगे तब तक अपनी सोच की कमियों से निजात पाने कि सोच भी नहीं सकते l इसलिए उस अनंत शक्ति तथा उसकी देन को पहचानने की कोशिश करें लेकिन ध्यान रहे जब तक हम अपने आध्यात्मिक पक्ष को मजबूत नहीं बना लेते तब तक मजबूत भौतिक पक्ष की उम्मीद करना हमारी सबसे बड़ी ना समझी होगी l


    2.    आज हम सभी इस वर्तमान व्यवस्था से परेशान हो चुके है l हमारा स्तिथियों पर से नियंत्रण खोता जा रहा है l जहाँ एक और महंगाई के बोझ तले दब कर निम्न तथा मध्यम वर्ग घुट-घुट कर जीने को मजबूर हो रहा है वहीँ दूसरी तरफ राजनीतिज्ञ और अफसर शाही पैसे के नशे में चूर होकर कानूनों से खिलवाड़ करने में लगे है l  अगर राजनीतिज्ञ व प्रशासनिक अधिकारी प्राक्रतिक  संसाधनों तथा मानवीय संसाधनों का बेहतर उपयोग करके अपनी मांग तथा उत्पादन में संतुलन पैदा करने के उद्द्येश्य के प्रति गंभीर सोच पर अमल करे तो महंगाई हमें इस कदर प्रभावित नहीं कर पायेगी l आप माने या माने इसलिए खुद विश्लेषण करके देखें तो यह सरकार की बोद्धिक तथा व्यवहारिक क्षमताओ का दिवालियापन है l


    3.    जनसँख्या के बढ़ते वेग की रोकथाम के लिए हमें अपनी सोच को समय की मांग के अनुसार अब तक लेना चाहिए था, सभी जानते भी है कि यही सभी समस्याओ की सबसे बड़ी मूल जड़ है l अब चीन को ही लें जिसने हमसे कहीं पहले इसके दोषों को समझकर एक बच्चानीति अपनायी है फिर हमारी सरकार क्यों अब तक भ्रमित हुए बैठी है l अगर हम इस सोच के पीछे धार्मिक पक्ष को जोड़ेंगे तो हमारी सीधे-सीधे यह नालायकी अर्थात बहाने से बढ़ कर और कुछ नहीं, राजसत्ता ये क्यों नहीं सोचती जब वह अपने घर में बढ़ते जनसँख्या वेग को महसूस कर सकते है तो फिर क्यों नहीं इस दबाव को राष्ट्र पर समझते......... l


    4.    राज्यसरकारो ने भूमि अधिग्रहण करके आवंटन की जो नीति अपनाई थी वो तो ठीक थी लेकिन भूमि उपयोगिता के महत्व को नजरंदाज करना बिलकुल औचित्य पूर्ण नहीं है l इन्ही नीतिओ की कमियों का फायदा उठाकर चतुर व्यापारी वर्ग ने ऐसी आंधी चलाई जो अब तक अपने दायरे को विस्तृत करके रुकने का नाम ही नहीं ले रही है l सरकारी प्रशासन कुछ भी कहें लेकिन यह तो भूमि रजिस्ट्री कार्यालय में स्पष्ट हो जाता है की बहार बैठे रजिस्ट्री टाइप करने वाले, साहब के नाम पर सरकारी फीस के अतिरिक्त एक प्रतिशत अधिक वसूल करके आपत्ति के डर के खौफ को आम जन के दिलो में इस कदर दिखा देते है कि आम जनता के पास कोई चारा ही नहीं रहता l इस अतिरिक्त बोझ से इक्कट्ठा किया गया पैसा कहाँ जाता है इसकी पारदर्शिता को जनता के सामने कभी उजागर नहीं किया जाता l बढ़ते शहरीकरण का दबाव सभी पर है लेकिन क्षेत्रफल इतना अधिक विस्तृत है की अफरा-तफरी का माहोल किसी भी सूरत में कायम नहीं होना चाहिए था l अगर हम भूमि रजिस्ट्री सम्बन्धी कठोर नियमावली पर अमल करते तो हाई-प्रोफाइल लोगो का जमा कला धन क्या कर लेता जब उसको बाहर निकलने का मौका ही न देते परन्तु ऐसा कठोर नियम तो सरकार में बैठे हम जैसे लोगो को ही बनाना है जो की भ्रष्टाचार के समुन्द्र में डूबे लोगो को बचाने में ही व्यस्त रहती है उसे काला धन निकलवाने के रास्ते खोजने व् सोचने की फुर्सत ही कहाँ है l 


    5.    हमारी सरकारे अपनी मांग तथा उत्पादन को समझने में अब तक बिलकुल विफल रही है तभी तो हमारे स्कल घरेलू उत्पादन तथा संसाधनों को देखते हुए अब  तक का हमारा प्रदर्शन हमारी क्षमता के अनुसार बिलकुल नहीं है फिर क्यों नहीं मांग तथा उत्पादन की स्तिथि को सुधारने के प्रयास करते l


    6.    आज कर चोरी में सभी संलिप्त है व्यपारिक वर्ग तथा आम नागरिक अपने देश के प्रति देय करो से बचते हुए अपना बचाव करने में जुटे हुए है, अगर हम सभी इस नीति के प्रति ही ईमानदार होते तो मैं नहीं समझता की हमें विश्व बैंक जैसी मजबूत आर्थिक संस्थाओ से ऋण लेने के लिए पिछड़े देशो की कतार में भी खड़ा होना पड़ता l इसलिए समय पर्याप्त है कहीं यह न हो की हमारा आर्थिक भविष्य विदेशियों के हांथो में चला जाए अर्थात हम आर्थिक रूप से गुलाम न हो जाए l


    7.    बढ़ते आर्थिक अंतर से हम इतना अधिक इस कदर प्रभावित हो चुके है कि हम एकाकीपन (पाश्चात्य संस्कृति का सबसे बड़ा दोष) की भावना को पूरी तरह से अपनाने में लगे है जिसमे नीरसता तथा एक दुसरे की मज़बूरी के शोषण के इलावा कुछ और है ही नही l हमारी भौतिक वस्तुओ कि बढती लालसा ही जब हमें यह सब कुछ करने पर मजबूर कर रही है तो हम इस पर नियंत्रण करने की क्यों नही सोचते, क्या हमारे संस्कारो के भी हाँथ खड़े हो चुके है, नही न ! फिर क्यों नही अपने संस्कारो के मूल्यों के महत्व को पहचानते l


    8.    जब तक हमारे खाद्य मंत्री जैसे साहब अपनी मांग तथा उत्पादन के आंकड़ो में छिपे स्वार्थी उद्द्येश्यो को पूरा करने की मानसिकता के लिए सार्वजानिक बयान करके व्यापारी वर्ग में अफरा-तफरी जैसा माहौल कायम करने कि मानसिकता को छोड़ नही देते तब तक तो खाद्य पदार्थो की कीमतों को कम करने की कैसे सोच सकते है l जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं जैसे रोटी, कपडा और मकान में से औसत लोगो को अच्छा भोजन तथा मकान का तो अब सपना सा लगने लगा है l इन मंत्री महोदय ने एक बयान और दिया था की उत्तर भारत में दुग्ध उत्पादन बहुत कम हो गया है बताइए इसे आज कौन नहीं जानता, क्यों इसे सार्वजनिक किया गया ? फिर भी क्यों नहीं समझने की कोशिश करते इन बयानों कि राजनीति को…………….l आयत निर्यात नीति का सदुपयोग करके क्यों नहीं ऐसी प्रणाली अपनाते कि खाद्य पदार्थ कम से कम मूल्यों पर आम जनता को उपलब्ध हो l नियमो को ताक पर रखने वाले काला बाजारियो कि सोच पर अगर हम पूर्ण ठोस प्रतिबंध लगा कर इन्हें व्यवसाय का मौका ही न दे तो स्तिथि कुछ हद तक और सुधर जायेगी l क्या आप यह जानते है कि किसान वर्ग से ज्यादा आढती लोग ही ज्यादा पैसा कमा जाते है जिससे आज उपभोक्ता तथा किसान वर्ग दोनों ही इस बाजार में लुटता है l


    9.    पेट्रोल, डीजल तथा घरेलू इंधन के मूल्यों पर नियंत्रण कि यथा संभव कोशिश क्यों नहीं की जाती इस नीति पर चल कर तो कोई भी विफल हो सकता है l क्यों नहीं भारतीय लोगो की क्रयशक्ति के अनुसार इनके मूल्य निर्धारित किये जाते ?  आवश्यक वस्तुओ पर देय करो को कम करके अगर हम शानो-शोकत के साधनों पर लाद दें तो अधिकतर भारत वासी राहत की साँस ले सकेंगे बाकी बचे लोग पैसे की क्रयशक्ति का फायदा उठाते हुए इससे धीरे-धीरे एक न एक दिन इसे अपना ही लेंगे l इसलिए ओसत जनसँख्या पर बढ़ते महंगाई के दबाव को कम करने के लिए कर प्रणाली को इतना सरल बना देना चाहिए कि कैसे भी भारतीय सोंच प्रभावित न होने पाए l आप भी सोंचे अगर कुछ कानूनों अर्थात योजना में हेर-फेर करके अगर हम इसके बड़ते प्रकोप से निजात पा सकते है तो फिर क्यों नहीं ऐसी नीतिया अपनायी जाती l


    10. आवश्यकता से अधिक खाद्यान जमा कर के आंकड़ो के प्रदर्शन से अपनी पीठ ठोंकने वाली सोंच को क्यों नहीं बदलते l आयत-निर्यात को योग्य अर्थशास्त्री तथा योजनाकार इतना सुगम क्यों नहीं बनाते ताकि इसका लाभ हर जन-जन तक पहुंचे l क्या असली विकास यह नहीं है ? अगर यही है तो सभी खुशहाल होकर भारतीय निरंतरता के प्रवाह को शांतिपूर्वक गति देने की सोच पैदा करते l


    11. अब आप ही सोंचे केवल देखरेख के आभाव में हमने ढेरो टन गेहूं सडा दिया मुझे यह नहीं समझ में आता की बफर स्टोक से ज्यादा पहली बात इतना खाद्यान जमा ही क्यों किया गया, फसल खरीद सकते है लेकिन गोदामों में नहीं पहुंचा सकते तो फिर क्यों ज्यादा खरीद की गयी l यह कोई समझदारी भरी सोंच नहीं है अगर कोई बेवकूफी हुई है तो उसके दोषी अधिकारी पर जिम्मेवारी क्यों नहीं डालते  ? अगर इन दोषी अधिकारियो की बेवकूफी के पीछे इनकी अपनी-अपनी जेबे भरने का स्वार्थ जुड़ा था तो इन्हें सजा क्यों नहीं दिलवाई जाती l


    12. बिजली के बिल माफ़ करने के पीछे वोट बैंक की राजनीति खेलने की कोशिश न करें l जन विकास के पैसे को बेजुबान मिटटी के बुतों के निर्माण पर फिजूल में न खर्चा जाए l घटिया सामग्री तथा उपकरणों के खरीद समझोते पर हस्ताक्षर करने से पहले ईमानदारी क्यों नहीं बरती जाती l अभी तो राष्ट्रमंडल खेल आयोजन को सफल बनाने की भरपूर कोशिश हुई, कोताही करने वालों को तो सजा मिलनी ही चाहिए l हमने विदेशी खिलाडियों तथा अधिकारियो को अपने इंतजामो तथा आवभगत से इसतरह गदगद कर दिया उनका भारत के प्रति बना नजरिया ही बदल गया l लेकिन आप यह क्यों नहीं सोचते की अभी तो हमारी औसत सोच ही भ्रष्ट हुई है जिसकी वजह से हमारा देश भ्रष्टाचार के पायदान पर और उचाइयों को छु चूका है, एक सर्वे रिपोर्ट.................. l


    13. जिम्मेवारी तथा क़ानूनी प्रावधानों का ईमानदारी से निर्वाह करे l सरकारी प्रशासनिक अफसरशाही तथा हमारे चुनिन्दा नेतागण ईमानदारी के आदर्श जनमानस के आगे स्थापित करें तो ही हम फिर से सयंमित तथा नियंत्रित हो सकते है अगर काबिल अर्थशास्त्रियो तथा बुद्धिजीवी वर्ग मिलकर बढती महंगाई का समाधान ढूंढे तो जरुर सफल हो सकते है l


    *** सख्त कानून तथा कर्तव्य के प्रति ईमानदारी इन दो नीतिओ को अपनाने भर से ही स्तिथि खुद-ब-खुद नियंत्रित हो हो चली जाएगी l 80 % के लगभग इस समस्या के दोषों को हमारे कानून संभाल लेंगे बाकी बचे 20 % को हमारी देशहित भावना आसानी से सम्भाल लेगी l बढती महंगाई मेरी अकेले की समस्या नहीं अपितु सभी सीमित आय वाले व्यक्तियों की आज की समय की मांग भी है l इस नीति को तो बाद में भी अपनाना पड़ेगा क्यों न उससे पहले ही इसे अपना ले l डॉ. किरण बेदी जैसे ईमानदार अफसर हमें वो संरक्षण भी देने को तैयार है जिसकी हमें आज बेहद सख्त जरुरत है l "गर्व से कहो हम भारतीय है " विविधता हमारे लिए कोई अभिशाप नहीं बल्कि एक बंद मुट्ठी की सम्पूर्ण शक्ति है और यह एक शक्ति के रूप में तभी सामने दिख पायेगी जब हम आपसी मतभेद भुला कर ईमानदारी से एकमत होंगे l


    आपके साथ की तलाश में ………………


    आपका


    एक भारतीय


    राकेश वर्मा


    कोठी न: 144, हिलव्यू एन्क्लेव


    जीरकपुर जिला मोहाली


    पंजाब.  


    Mob:- 09780221522


    Resi:- 09257285763 


    Email:bhartiya1674@gmail.com   


  2.  Alert My country Mens


    If You Dare to Know the Truth Behind American President Visit Then Read It carefully …………… इस भौतिक विश्व जगत के सबसे अधिक शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति भारत दौरे पर आने वाले है और हम भी उनके स्वागत की ख़ुशी में पलके बिछाने को अपना सौभाग्य मान रहे है l वैसे भी हम अपने संस्कारो के अनुसार अतिथि को देवता समान मानते आये है तो ऐसा होना स्वभाविक ही है परन्तु मेरे भाइयों श्री बराक ओबामा जी को सम्मान अवश्य दें लेकिन थोडा सा सतर्क हो कर क्योंकि वो बड़ी दूरदर्शी सोच रखने वाले इन्सान है l उनके इस दौरे से जुड़े राजनितिक उद्द्येश्य बेशक कुछ भी हो लेकिन हम इससे भी इंकार नहीं कर सकते कि वो खुद अपनी खुली आँखों से भारतीय समाज की उस स्थिति का अवमूल्यन करने आ रहे है कि हमारी असली ताकत क्या है..?


                आप इनकी यात्रा के पीछे छिपे सच को भी जानने की कोशिश कीजिये तभी आप स्वयम महसूस कर पायेंगे की अब तक हम अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को कहीं इनके सामने उजागर न कर दें l जिसकी तरफ हम कभी भी ध्यान ही नहीं देते यहाँ यह बताना जरुरी है की यह अमेरिकन राष्ट्रपति एक स्वतंत्र सोच नहीं अपितु अपने देश के प्रति पूर्ण रूप से उत्तरदायी इन्सान है l साहस की वो जिन्दा जगती सोच है इसलिए वो खुद देखने आ रहे है की विश्व मंदी के दौर में भरष्टाचार से गुमराह होने के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था इतनी क्यों प्रभावित नहीं हो पायी, वो जानना चाहते है कि आखिरकार क्या है हमारे समाज की ताकत l


                घबराने की बात तो नहीं है क्योंकि हमारे धर्म ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है जिसके सहारे अब तक हम अपना अस्तित्व कायम रखने में कामयाब रहे है लेकिन सतर्क रहे उनकी दूरदर्शी सोच से l कहीं ये न हो की हम बड़प्पन में अपने होते नैतिक पतन से उन्हें अवगत करा दें, ये कोई शांति दूत नहीं बल्कि जायजा लेने आ रहे है हमारी कमजोरियों का l इसलिए पलके इतनी भी मत झुका लेना की हम अपनी कमजोरी को ही न ढक सके l इनकी सोच सीमित तथा देश प्रेम की भावना से प्रेरित है और यह हमारी मानसिक कमियों को पढना चाहते है l


                अब आप खुद ही अंदाजा लगाए की पाकिस्तान में कट्टरता का उपयोग कैसे इन्होने हथियार बाँट कर किया l विकसित से विकसित श्रेणी से हथियार इनको बैचे वो भी सिर्फ इस स्वार्थ को पूरा करने के लिए ताकि उनकी खुद की अर्थव्यवस्था मजबूत तथा कायम रहे l अगर आज पाकिस्तान के समाजिक तथा आर्थिक पक्ष की और ध्यान दें तो लगता है कि वो दुसरे के बहकावे में आ कर अपने घरों में खुद आग लगा बैठे है अर्थात वो ग्रह युद्ध की विभीषिका में झुलस चुके है लेकिन अब भी घबराने की कोई वजह नहीं है उनके लिए, क्योंकि उनके धर्म में बहुत ताकत है l पहले उन्होंने भारत पर निगाह रखने के लिए पाकिस्तान की सरजमीं तथा समाज को अपना माध्यम बनाया और अब उसकी निगाहें चीन के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाने के लिए भारत पर टिक गयी है l


                चीन ने शुरू से ही अपनी विदेश निति ऐसी अपनाई जिसमें बाहरी हस्तक्षेप को जगह दी ही नहीं गयी इसलिए ही वो आज आत्मनिर्भर और सुरक्षित है भावार्थ इसकी सीमा क्षेत्र में घुसने की हिमाकत के लिए बेहद मजबूत साहस की जरुरत है l इस अवमूल्यन से आप खुद अपने देश तथा विदेशी स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन कर सकते है l चीनी समाज को प्रभावित करने के लिए प्रेसिडेंट ऑफ़ अमेरिका की क्या राय होगी आप खुद अंदाजा लगा सकते है l इसलिए इन नकारात्मक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए देश के स्वाभिमान की खातिर किसी भी समझोते पर हस्ताक्षर करने से पहले एकमतता को महत्व दें बेशक आज तक तो हम एकमत तो नहीं पाएं लेकिन इतना दिल भी रखते है कि जहाँ देश भक्ति कि बात आएं वहां पर जान न्योछावर करने से भी नहीं घबराते l इस जज्बे को बनाए रखते हुए अपने अतिथि को उचित सम्मान दें l


              *** सभी राजनितिक संगठनो तथा कार्यवाहक प्रशासनिक प्रणाली से अपील है कि वो बड़ी सावधानी से इस दौरे के नकारात्मक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अपने देश के प्रति नैतिक फर्ज को अंजाम दें l


                मैं आपको पूर्ण विश्वास दिलाता हूँ कि आज हम जिन समस्याओं से पीढित है वो सिर्फ हमारी मानसिकता में आई विकृतियों के दोषों का परिणाम है जिनको हम आज तक खुद नियंत्रित करने में असमर्थ रहे है लेकिन घबराने कि बात नहीं हमारे अन्दर उस असीम अनन्त अतुलनीय शक्ति की दी हुई बौद्धिक क्षमता है कि हम अब भी खुद अपने आप को नियंत्रित करने में समर्थ है l मैं उन समाजिक बुराइयों के पीछे छिपे सत्यों से आपको अवगत करने के लिए बचनबद्ध हूँ जिन्हें आप अब तक खुली मानसिकता के साथ स्वीकारने में हम हिमाकत ही न कर सके l मैं भी समयावधि से जुड़ा हूँ और मेरे पास भी समय वाकई ही बहुत कम है l मुझे आप अपना वैचारिक समर्थन दें आपके समर्थन की तलाश में …………….


    Hear the crying voice of a thought before its death l


    All leading News Channels’ and News papers Director’s and Reporter Please Spread this peace and awakening message to all Indian citizens because it is related with Indian society only. This is not a Challenging message   


    Thanks To All


    Contact Me At:


    Bhartiya1674@gmail.com


    And Call At: 9780221522                        

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